दुनिया की हकीकत एक बड़ी ही प्यारी मिसाल के जरिए हर मुस्लिम को चाहिए के इसको पढ़े


"जो लोग देहातों के" रहने वाले हैं वह जानते होंगे देहातों में एक कीड़ा पाया जाता है जिसे गोबर का कीड़ा कहा जाता है उसे गाय भैंस के गोबर की "बु" बहुत पसंद होती है। वह सुबह उठकर गोबर की तलाश में निकल पड़ता है और सारा दिन जहां से गोबर मिले उसका गोला बनाता रहता है शाम तक अच्छा खासा बड़ा गोला बना लेता है। फिर उस गोले को धक्का देते हुए अपने बिल तक ले जाता है लेकिन बिल पर पहुंच कर उसे एहसास होता है कि गोला तो बहुत बड़ा बना लिया और बिल का सुराग छोटा है बहुत कोशिश के बावजूद वोह गोला बिल में नहीं जा सकता।

यही हाल हम सबका है सारी ज़िंदगी हलाल हराम तरीके से दुनिया का माल व मता जमा करने में लगे रहते हैं और जब आखिरी वक्त करीब आता है तो पता चलता है कि यह सब तो कब्र में मेरे साथ नहीं जा सकता और हम उस ज़िंदगी भर की कमाई को हसरत से देखते ही रह जाते हैं।

मैं चाहे कोई कामयाब बिज़नेस मैंन बन जाऊं अरबों रुपए की बैंक बैलेंस बना लूं अपने लिए हर आशाइस का इंतज़ाम कर लूं लेकिन जब मेरी सांस निकल जाएगी तो मेरा कीमती लिबास उतारकर लट्ठे का कफन पहना दिया जाएगा मेरे महलनुमा घर में मेरा वजूद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मेरे नाम के बजाए मुझे मय्यत कहा जाएगा कल तक जो लोग मेरे बगैर रह नहीं सकते थे आज वोह खुद मुझे अपने कंधो पर उठा कर कबर के गढ़े में छोड़ आएंगे।

हमें इस आरज़ी दुनिया को छोड़ कर जाना है इसलिए हमें जहां जाना और मुस्तकिल रहना है वहां के लिए तैयारी करना बहुत ज़रूरी है हर नेकी हमें वहां एक रफीक दोस्त के रुप में मिलेगी और हर बुराई आज़ाब की सूरत में अब ये हमारे अपने इख्तियार में है कि हम अपनी आख़िरत के लिए अच्छा ठिकाना बनाते हैं या बुरा। अपने लिए वोह चीज़ें जमा करते हैं जो आखिरत में काम आएंगी या गोबर के कीड़े की तरह हिर्स व लालच में पड़कर सिर्फ अपना वक्त बर्बाद करते हैं।

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