मैं पहले मुसलमानों से संबंधित डिबेट्स देखा करता था, जिसमें आमतौर पर दो मौलाना होते थे — एक मुसलमानों के पक्ष में और एक विरोध में। जो मौलाना विरोध में होते थे, उन्हें मैं अक्सर मुनाफिक समझता था, और मुझे लगता था कि बहुत से मुसलमान भी उन्हें मुनाफिक ही मानते होंगे। डिबेट के दौरान, मुस्लिम समर्थक मौलाना या तो कमजोर तर्क देते थे या जानबूझकर हार जाते थे। उनकी हार पर मुझे अफसोस भी होता था।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में मुझे धीरे-धीरे यह समझ में आया कि इन डिबेट्स के दौरान जो भी मौलाना जीतते या हारते हैं, उन्हें चैनल वाले हर डिबेट के लिए पांच हजार रुपये देते हैं। इस कारण बहुत से मौलाना टीवी डिबेट्स में रोजाना हाजिरी लगाने लगे हैं। यही कारण है कि इन डिबेट्स में भाग लेने वाले कई मौलाना और मुस्लिम महिलाएं, जो किसी खास मुद्दे को उछालकर डिबेट्स में बैठती हैं, सिर्फ इस पैसे के लिए यह सब करती हैं।
#फर्जी_मौलाना
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