न्यायपालिका का पक्षपाती रुख: मुसलमानों के साथ अन्याय की कड़वी सच्चाई
वे न्यायाधीश जो संकीर्ण और पक्षपाती मानसिकता रखते हैं, न केवल अपने फैसलों के जरिए मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय को वैध ठहराते हैं, बल्कि उन्हें न्याय से वंचित करने की साजिश भी रचते हैं। मुसलमानों के खिलाफ झूठे आरोप, फर्जी मुकदमे और पक्षपातपूर्ण फैसले न्यायिक प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करते हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव का यह बयान कि "यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा," न केवल संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि मुसलमानों समेत सभी अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अन्यायपूर्ण व्यवहार को भी दर्शाता है। यह मानसिकता यह साफ करती है कि न्यायपालिका जैसे उच्च और संवेदनशील संस्थान में भी ऐसे लोग हैं जो अपनी दूषित सोच को न्याय व्यवस्था पर थोपने का प्रयास करते हैं।
मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय
भारत में मुसलमान, जो एक बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग हैं, हर स्तर पर भेदभाव और अन्याय का सामना कर रहे हैं। सरकारी कार्यालयों, शिक्षण संस्थानों और न्यायपालिका में उनकी हिस्सेदारी नगण्य है। ऐसे में जब एक न्यायाधीश अपनी निष्पक्षता को दरकिनार करते हुए बहुसंख्यक वर्ग की श्रेष्ठता का दावा करता है, तो यह मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय के दरवाजे और चौड़े कर देता है।
न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह कमजोर वर्गों की रक्षा करे। लेकिन जब इस तरह की दूषित मानसिकता वाले न्यायाधीश फैसले करते हैं, तो वे मुसलमानों के खिलाफ अन्याय को वैध ठहराने का प्रयास करते हैं।
मुसलमानों के खिलाफ फैसले: न्यायिक पक्षपात का प्रमाण
पिछले कुछ वर्षों में मुसलमानों के खिलाफ आए फैसले इस सच्चाई को और उजागर करते हैं कि न्यायपालिका में कुछ न्यायाधीश पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं। चाहे दंगों के दोषियों को सजा देने का मामला हो या धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के मुद्दे, मुसलमानों को अक्सर न्याय से वंचित रखा जाता है।
ऐसे न्यायाधीश जिनका मस्तिष्क बहुसंख्यक वर्ग के पक्षपात से दूषित हो, वे मुसलमानों के मामलों में निष्पक्ष फैसले कैसे दे सकते हैं? यह पक्षपात न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता को ठेस पहुंचाता है, बल्कि मुसलमानों के बीच न्यायिक प्रणाली के प्रति अविश्वास को भी बढ़ावा देता है।
मुसलमानों पर अत्याचार के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
मुसलमानों को न केवल न्यायिक अन्याय का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनके खिलाफ जारी राजनीतिक और सामाजिक अत्याचार भी एक गंभीर समस्या है। गाय रक्षा के नाम पर हत्याएं, धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले और उनके विश्वासों को निशाना बनाना एक सुनियोजित साजिश को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य मुसलमानों को भयभीत करना और उनके मौलिक अधिकारों को छीनना है।
जब न्यायपालिका जैसे संस्थान में ऐसे पक्षपाती न्यायाधीश मौजूद हों, तो मुसलमानों को न केवल न्याय से वंचित किया जाता है, बल्कि उनके खिलाफ अत्याचार को और बल मिलता है।
डॉ. हयात क़ासमी
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